हरियाली अमावस 4 अगस्त को, पौधों का रोपण व पूजन कर भगवान भोलेनाथ को करें प्रसन्न
रीवा। स्नान-दान के लिए उदया तिथि मान्य होती है। अतः हरियाली अमावस्या पर्व तथा व्रत 4 अगस्त को मनाई जायेगी । सावन मास की अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। भारतीय पंचांग के अनुसार सावन मास हिंदू वर्ष का पांचवा महीना होता है। सावन मास से ही भारत वर्ष मे वर्षा ऋतु प्रारंभ होती है। इसी समय चातुर्मास्य होने के कारण भगवान शिव ब्रह्मांड के संचालक होते हैं, तथा इसमें भी सावन मास भगवान नीलकंठ महादेव की पूजा-अर्चना -अभिषेक का सर्वोत्तम समय होता है। इस कारण से भी श्रावण मास अमावस्या को बहुत महत्त्व दिया जाता है। भारत देश मे सावन अमावस्या के दिन कई महत्वपूर्ण अनुष्ठानों और परंपराओं को देखा जाता है। यह महीने का सबसे अंधेरा दिन है, हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इसे वर्ष के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली दिनो में से एक माना जाता है।
: हरियाली अमावस्या का आध्यात्मिक महत्व
अमावस्या के दिन ब्रह्माण्ड मे विशिष्ट प्रकार की तरंगों का निष्कासन होता है, क्योंकि इस दिन सूर्य तथा चंद्र एक सीध में स्थित रहते हैं। इसलिए यह पर्व विशेष पुण्य देने वाला होता है। जिससे विशिष्ट प्रकार के कार्यों का निष्पादन सफलतापूर्वक किया जा सकता है। जैसे पितरो की सदगति, पितृदोष निवारण, पिंड़दान, तर्पण, कालसर्प योग निवारण अनुष्ठान, पापो का क्षय करके पुण्य प्राप्त, स्नान-दान, जप-अनुष्ठान, सिद्धि प्राप्ति करने हेतू, मारण, मोह, अभिचारक कर्म करने का सर्वोत्तम दिन-समय होता है।
हिन्दु धर्म मे हरियाली अमावस्या का महत्व पर्यावरण तथा प्रकृति को बचाए रखने के लिए जनता मे जागरूकता पैदा करना है। इस दिन किसान आने वाले वर्ष में फसल कैसी होगी इनका अनुमान लगाते हैं, शगुन करते हैं। इस दिन वृक्षारोपण करना उत्तम होता है। मान्यता है कि इस दिन पेड़ पौधों को लगाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
हरियाली अमावस्या में यह करें शुभ कार्य
पुराणों के अनुसार अमावस्या के दिन स्नान-दान-पूजन-तर्पण करने की परंपरा है। वैसे तो इस दिन गंगा-स्नान का विशिष्ट महत्व माना गया है, परंतु जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते, वे किसी भी नदी या सरोवर तट आदि में स्नान कर सकते हैं। पवित्र नदी,सरोवर अथवा केवल पवित्र जल से स्नान के उपरांत विधिवत शिव-पार्वती का पूजन आवश्यक है। तत्पश्चात सूर्य देव को अर्ध्य प्रदान करे। तत्पश्चात पीपल वृक्ष तथा तुलसा जी को श्रद्धापूर्वक जल से सींच कर ज्योत जलाकर पूजा करनी चाहिये।
पूजा के बाद प्रत्येक वर्ष हरियाली अमावस्या पर कम से कम एक अथवा सामर्थ्यनुसार अधिक संख्या मे वृक्षारोपण अवश्य करना चाहिए। हरियाली अमावस्या के दिन विशेष तौर पर पीपल, बरगद, आम, आंवला, बेलपत्र, शमी, गूलर, पाकड, रात की रानी और नीम के वृक्षों का रोपण करना चाहिए। आज के दिन वृक्षारोपण करने से भगवान शिव की प्रसन्नता होती है पर्यावरण में भी संतुलन स्थापित होता है। वेद ग्रंथों के अनुसार इस दिन आरोग्य प्राप्ति के लिए नीम का वृक्ष, सुख की प्राप्ति लिए तुलसी का पौधा, संतान प्राप्ति के लिए केले का वृक्ष और धन सम्पदा के लिए आंवले का पौधा लगाना शुभ होता है।
ऐसे करें अमावस्या पूजन
ज्योतिर्विद राजेश साहनी, रीवा के अनुसार सावन अमावस्या के दिन का व्रत रखने और चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र देवता अपनी कृपा बरसाते हैं और सौभाग्य व समृद्धि का आर्शीवाद देते हैं। भगवान शिव अपने मस्तक पर चंद्र धारण करते हैं,अतः हरियाली अमावस्या के दिन सूरज ढलने के बाद खीर बनाएं और उसका भोग चंद्रदेव को लगाकर स्वयं ग्रहण करे।
सूर्यास्त के बाद घर के मुख्य द्वार पर, मंदिर, चौराहे, उपवन तथा जल के किनारे पर सरसों के तेल के दीपक जलाएं। इसे श्राद्ध की अमावस्या भी कहते हैं, क्योंकि इस दिन अपने पूर्वजों को याद किया जाता है और उनके लिए प्रार्थना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूर्वज धरती पर आकर अपने परिवार को आर्शीवाद देते हैं।
अतः श्रावण अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण आदि कर्म करनें के उपरांत जाने-अनजाने में जो गलती हो, उसके लिए पितरों से क्षमा मांगनी चाहिए।
इस प्रकार स्नान-पूजन, पितृ तर्पण के उपरांत ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणा करवाकर, तत्पश्चात गरीबों, लाचारो, अपाहिजो को भोजन को भोजन करवाना चाहिए। तदोपरान्त ब्राह्मणों और ज़रूरतमंदों को श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए, दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिये।
सावन मास की अमावस्या पितरो को मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृदोष निवारण अनुष्ठान तथा कालसर्पयोग दोष से मुक्ति पाने के लिये कालसर्प योग अनुष्ठान करने का अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस है।