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आज का पंचांग 9 सितंबर 2024

By Janhit TV

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आज का पंचांग
*दिनांक – 9 सितम्बर 2024*
*दिन – सोमवार*
*संवत्सर –काल युक्त*
*शक संवत –1947*
*विक्रम संवत् – 2081*
*कलि युगाब्द –5126*
*अयन – दक्षिणायन*
*ऋतु – वर्षा*
*मास – भाद्रपद*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – षष्ठी रात्रि 09:53 तक तत्पश्चात सप्तमी*
*नक्षत्र – विशाखा शाम 06:04 तक तत्पश्चात अनुराधा*
*योग – वैधृति रात्रि 12:33 सितम्बर 10 तक तत्पश्चात विष्कम्भ*
*राहु काल – प्रातः 07:57 से प्रातः 09:31 तक*
*सूर्योदय – 05:49*
*सूर्यास्त – 06:11*
स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*अग्निवास*
06+02+01=09÷4=01 स्वर्ग लोक में।
*शिववास*
06+06+5=17÷7 =03 वृषारूढ़ा वासे।
व्रत पर्व विवरण – स्कन्द षष्ठी, सर्वार्थ सिद्धि योग (शाम 06:04 से प्रातः 06:25 सितम्बर 10 तक)*
विशेष – षष्ठी को नीम-भक्षण (पत्ती फल खाने या दातुन मुंह में डालने) से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
*गणेश उत्सव*
मोर पंख सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण को नहीं, बल्कि सभी देवी–देवताओं को प्रिय है। इसमें नौ ग्रहों का निवास भी माना गया है। ज्योतिष शास्त्र से जुड़े कुछ खास उपायों को गणेश उत्सव पर किया जाए तो पैसों के साथ ही जीवन की अन्य कई तरह की समस्याओं को दूर किया जा सकता है। आइए जानते हैं मोर पंख से जुड़े कुछ खास आसान उपाय….
*गणेश उत्सव में सिर्फ 1 मोर पंख बदल सकता है आपका भाग्य*
*कारगर उपाय*
आपका भाग्य बदल सकता है गणेश जी को चढ़ाया हुआ एक मोरपंख
*पैसों से जुड़ी प्राॅब्लम*
जिन लोगों को पैसों की कमी रहती है वे पर्स में ये मोर पंख रखें।
*रुके हुए काम होंगे पूरे*
इस मोर पंख को हमेशा साथ रखने पर रुके हुए काम पूरे होने लगते हैं।
*बच्चा जिद्दी हो तो*
उस बच्चे के सिर से पैर तक ये मोर पंख फिरा दें। फायदा होगा।
*डरावने सपने आते हों तो*
रात में डरावने सपने आते हों तो मोर पंख को सिरहाने रखकर सोएं।
*नकारात्मक शक्ति*
मोर पंख को घर के किसी ऐसी जगह पर रखें जहां से वो दिखाई दे तो नकारात्मकता दूर होगी।
*बरकत के लिए*
साउथ इस्ट में इस मोर पंख को रखने से घर में हमेशा बरकत रहेगी।
*किताब में मोर पंख*
इस मोर पंख को स्टूडेंट अपनी किताब में रखें तो पढ़ाई में मन लगने लगेगा।
*यदि वास्तुदोष हो तो*
यदि मुख्य द्वार दोष में हो तो दरवाजे के ऊपर तीन मोर पंख लगाएं।
*शत्रु परेशान कर रहा हो तो*
मंगलवार को मोर पंख से हनुमानजी के मस्तक पर सिंदूर से शत्रु का नाम लिखे।रात भर मोर पंख को देवस्थान पर रखें व सुबह बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें।

*ब्रह्मचर्य : शरीर का तीसरा उपस्तंभ*

शरीर, मन, बुद्धि व इन्द्रियो को आहार से पुष्टि, निद्रा, मन, बुद्धि व इऩ्द्रियों को आहार से पुष्टि, निद्रा से विश्रांति व ब्रह्मचर्य से बल की प्राप्ति होती है ।

*ब्रह्मचर्य परं बलम् ।*

*ब्रह्मचर्य का अर्थः*

‘सर्व अवस्थाओं में मन, वचन और कर्म तीनों से मैथुन का सदैव त्याग हो, उसे ब्रह्मचर्य कहते हैं ।’ (याज्ञवल्क्य संहिता)

ब्रह्मचर्य से शरीर को धारण करने वाली सप्तम धातु शुक्र की रक्षा करती है । शुक्र सम्पन्न व्यक्ति स्वस्थ, बलवान, बुद्धिमान व दीर्घायुषी होते हैं ।
ब्रह्मचर्य से व्यक्ति कुशाग्र व निर्मल बुद्धि, तीव्र स्मरणशक्ति, दृढ़ निश्चय, धैर्य, समझ व सद्विचारों से सम्पन्न तथा आनंदवान होते हैं ।
वृद्धावस्था तक उनकी सभी इन्द्रियाँ, दाँत, केश व दृष्टि सुदृढ़ रहती है । रोग सहसा उनके पास नहीं आते । क्वचित् आ भी जायें तो अल्प उपचारों से शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं ।

भगवान धन्वंतरि ने ब्रह्मचर्य की महिमा का वर्णन करते हुए कहा हैः

‘अकाल मृत्यु, अकाल वृद्धत्व, दुःख, रोग आदि का नाश करने के सभी उपायों में ब्रह्मचर्य का पालन सर्वश्रेष्ठ उपाय है । यह अमृत के समान सभी सुखों का मूल है यह मैं सत्य कहता हूँ ।’

जैसे दही में समाविष्ट मक्खन का अंश मंथन प्रक्रिया से दही से अलग हो जाता है, वैसे ही शरीर के प्रत्येक कण में समाहित सप्त धातुओं का सारस्वरूप परमोत्कृष्ट ओज मैथुन प्रक्रिया से शरीर से अलग हो जाता है । ओजक्षय से व्यक्ति असार, दुर्बल, रोगग्रस्त, दुःखी, भयभीत, क्रोधी व चिंतित होता है ।
*शुक्रक्षय के लक्षण (चरक संहिता)*

शुक्र के क्षय होने पर व्यक्ति में दुर्बलता, मुख का सूखना, शरीर में पीलापन, शरीर व इन्द्रियों में शिथिलता (अकार्यक्षमता), अल्प श्रम से थकावट व नपुंसकता ये लक्षण उत्पन्न होते हैं ।

*अति मैथुन से होने वाली व्याधियाँ*

ज्वर (बुखार), श्वास, खाँसी, क्षयरोग, पाण्डू, दुर्बलता, उदरशूल व आक्षेपक (Convulsions- मस्तिष्क के असंतुलन से आनेवाली खेंच) आदि ।

*ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय*

ब्रह्मचर्य-पालन का दृढ़ शुभसंकल्प, पवित्र, सादा रहन-सहन, सात्त्विक, ताजा अल्पाहार, शुद्ध वायु-सेवन, सूर्यस्नान, व्रत-उपवास, योगासन, प्राणायाम, ॐकार का दीर्घ उच्चारण, ‘ॐ अर्यामायै नमः’ मंत्र का पावन जप, शास्त्राध्ययन, सतत श्रेष्ठ कार्यों में रत रहना, सयंमी व सदाचारी व्यक्तियों का संग, रात को जल्दी सोकर ब्राह्ममुहूर्त में उठना, प्रातः शीतल जल से स्नान, प्रातः-सांय शीतल जल से जननेन्द्रिय-स्नान, कौपीन धारण, निर्व्यसनता, कुदृश्य-कुश्रवण-कुसंगति का त्याग, पुरुषों के लिए परस्त्री के प्रति मातृभाव, स्त्रियों के लिए परपुरुष के प्रति पितृ या भ्रातृ भाव – इन उपायों से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है ।

स्त्रियों के लिए परपुरुष के साथ एकांत में बैठना, गुप्त वार्तालाप करना, स्वच्छंदता से घूमना, भड़कीले वस्त्र पहनना, कामोद्दीपक श्रृंगार करके घूमना – ये ब्रह्मचर्य पालन में बाधक हैं । जितना धर्ममय, परोपकार-परायण व साधनामय जीवन, उतनी ही देहासक्ति क्षीण होने से ब्रह्मचर्य का पालन सहज-स्वाभाविक रूप से हो जाता है । नैष्ठिक ब्रह्मचर्य आत्मानुभूति में परम आवश्यक है ।

*पंचक*
16 सितम्बर 2024 सोमवार को सुबह 05:45 बजे से 20 सितम्बर 2024 दिन शुक्रवार को सुबह 05:15 बजे तक।
*एकादशी*
14 सितम्बर 2024 पद्मा एकादशी व्रत सर्वे।
*प्रदोष*
15 सितम्बर 2024 दिन रविवार प्रदोष व्रत।
*पूर्णिमा*
17 सितम्बर 2024 दिन मंगलवार अनंत चतुर्दशी व्रत पूर्णिमा।
पूर्णिमा श्राद्ध।
18 सितम्बर 2024 दिन बुधवार स्नान दान पूर्णिमा।
प्रतिपदा श्राद्ध।
*पंo वेदान्त अवस्थी*

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