आज का पञ्चाङ्ग
दिनांक – 29 सितम्बर 2024*
दिन – रविवार*
संवत्सर –काल युक्त*
शक संवत –1946*
विक्रम संवत् – 2081*
कलि युगाब्द –5126*
अयन – दक्षिणायन*
ऋतु – शरद*
मास – आश्विन*
पक्ष – कृष्ण*
तिथि – द्वादशी शाम 04:47 तक तत्पश्चात त्रयोदशी*
*नक्षत्र – मघा प्रातः 06:19 सितम्बर 30 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी*
*योग – साध्य रात्रि 12:28 सितम्बर 30 तक तत्पश्चात शुभ*
*राहु काल – शाम 04:59 से शाम 06:29 तक*
*सूर्योदय – 06:04*
*सूर्यास्त – 05:56*
स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*अग्निवास*
27+01+01=29÷4=01 स्वर्ग लोक में।
*शिववास*
27+27+5=59÷7 =03 वृषारूढ़ा वासे।
व्रत पर्व विवरण – द्वादशी श्राद्ध*
विशेष – द्वादशी को पूतिका (पोई) खाने से पुत्र का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
*पढाई में आशातीत लाभ हेतु*
विद्यार्थी अध्ययन-कक्ष में अपने इष्टदेव या गुरुदेव का श्रीविग्रह अथवा स्वस्तिक या ॐकार का चित्र रखें तथा नियमित अध्ययन से पूर्व उसे १०-१५ मिनट अपनी आँखों की सीध में रखकर पलकें गिराये बिना एकटक देखें अर्थात त्राटक करें । इससे पढ़ाई में आशातीत लाभ होता हैं ।
*रोग का रहस्य और निरोगता का मूल*
जो भोगी होता है वह रोगी अवश्य होता है, यह नियम है ।
जो साधन-सामग्री है उसके द्वारा साधक किसी प्रकार के सुख की आसक्ति में बँधे नहीं, इसी कारण प्यारे परमात्मा रोग के स्वरूप में प्रकट होते हैं । पर साधक यह रहस्य जान नहीं पाता कि मेरे ही प्यारे रोग के वेश में आये हैं ।
शारीरिक बल का आश्रय तोड़ने के लिए रोग आया है । उससे डरो मत अपितु उसका सदुपयोग करो । रोग का सदुपयोग देह की वास्तविकता का अनुभव कर उससे असंग हो जाना है ।
चित्त में प्रसन्नता, मन में निर्विकल्पता ज्यों-ज्यों सबल तथा स्थायी होती जायेगी त्यों-त्यों स्वतः आरोग्यता आती जायेगी, इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है ।
निश्चितता तथा निर्भयता आने से प्राणशक्ति सबल होती है, जो रोग मिटाने में समर्थ है । उसके लिए हरि-आश्रय तथा विश्राम (विश्रांति) ही अचूक उपाय है ।
शरीर का पूर्ण स्वस्थ होना शरीर के स्वभाव से विपरीत है । जिस प्रकार दिन और रात दोनों ही काल की सुंदरता होती है उसी प्रकार रोग और आरोग्यता दोनों से ही शरीर की वास्तविकता प्रकाशित होती है ।
जो रोग औषधि से ठीक नहीं होता उसका कारण अदृष्ट (भाग्य, पूर्व के कर्मों का फल) की मलिनता होती है । अदृष्ट की मलिनता शुभ कर्म आदि से दूर होती है, औषधि से नहीं ।
रोग-निवृत्ति का एक सर्वोत्तम उपाय यह भी है कि यदि रोगी रोगी-भाव का सद्भाव अपने में से निकाल दे तो फिर रोग बेचारा निर्जीव हो जाता है क्योंकि ‘मैं’ की सत्ता से सभी सत्ताएँ प्रकाशित होती हैं । सद्भाव से प्रतीति में सत्यता आ जाती है जो दुःख का मूल है ।
रोग यही है कि ‘मैं रोगी हूँ ।’ औषधि यही है कि ‘मैं सर्वदा निरोग हूँ, मैं साक्षात् आरोग्य हूँ ।’ आरोग्यता से अपनी जातीय एकता है । यदि एक बार भी अपनी पूरी शक्ति से यह आवाज लगा दो कि ‘मैं निरोग हूँ, मैं ही आरोग्य हूँ’ तो रोग भाग जायेगा ।
मन में स्थिरता, चित्त में प्रसन्नता और हृदय में निर्भयता ज्यों-ज्यों बढ़ती जायेगी त्यों-त्यों आरोग्यता स्वतः आती जायेगी कारण कि मन तथा प्राण का घनिष्ठ संबंध है । अतः मन के स्वस्थ होने से शरीर भी स्वस्थ हो जाता है ।
रोग से अशुभ कर्म के फल का अंत होता है और तप से अशुभ कर्म का अंत होता है । जिस प्रकार तपस्वी को तप के अंत में शांति मिलती है । उसी प्रकार रोगी को भी रोग के अंत में शांति मिलती है ।
*बाधाएँ आती है तो…*
यदि आपको किसी कार्य में बाधा आ रही हो तो किसी शुभ समय में पीपल के पत्ते पर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ मंत्र तीन बार लिख के उसे अपने पूजा-स्थल में रखकर पूजन करें । इससे बाधाएँ समाप्त होंगी ।
*पंचक*
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को साय 03:44 बजे से 17 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार साय 04:20 बजे तक।
*नवरात्रि*
03 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार प्रतिपदा नवरात्रि मूहर्त प्रातः 06:35 से 08:03 शुभ वेला। दिवा 12:03 से 12: 50अभिजित वेला पूजन एवम घट स्थापना करना शुभ रहेगा।
11 अक्टूबर 2024 दिन शुक्रवार दुर्गाष्टमी महानवमी व्रत।
12 अक्टूबर 2024 दिन शनिवार सरस्वती विसर्जन, नीलकंठ दर्शन,व्रत पारण कन्याभोज इत्यादि।
*एकादशी*
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार पापंकुशा एकादशी स्मार्त व्रत (गृहस्थ)।
14 अक्टूबर 2024 दिन सोमवार पापंकुशा एकादशी व्रत वैष्णव।
*प्रदोष*
30 सितम्बर 2024 दिन सोमवार को प्रदोष व्रत (मासिक शिव रात्रि)।
15 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार प्रदोष व्रत।
*अमावस्या*
02 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार पितृ विसर्जन अमावस्या।
*पूर्णिमा*
16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार व्रत पूर्णिमा।
17 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार स्नान दान पूर्णिमा कार्तिक स्नान प्रारम्भ।
*पंo वेदान्त अवस्थी*