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आज का पंचांग 13 अक्टूबर 2024

By Janhit TV

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आज का पञ्चाङ्ग
*दिनांक – 13 अक्टूबर 2024*
दिन – रविवार*
संवत्सर –काल युक्त*

विक्रम संवत् – 2081*
शक संवत –1946*
कलि युगाब्द –5126*
अयन – दक्षिणायन*
ऋतु – शरद*
मास – आश्विन*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – दशमी प्रातः 09:08 तक तत्पश्चात एकादशी*
*नक्षत्र – धनिष्ठा रात्रि 02:51 अक्टूबर 14 तक तत्पश्चात शतभिषा*
*योग – शूल रात्रि 09:26 तक, तत्पश्चात गण्ड*
*राहु काल – दोपहर 04:48 से शाम 06:16 तक*
*सूर्योदय – 06:14*
*सूर्यास्त – 05:46*
स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशा शूल – पश्चिम दिशा में*
*अग्निवास*
10+01+01=12÷4=00 प्रथ्वी लोक में।
*शिववास*
10+10+5=25÷7 =04 सभायाम वासे।
*ब्राह्ममुहूर्त – प्रातः 04:57 से 05:46 तक*
*अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:02 से दोपहर 12:49 तक*
*निशिता मुहूर्त- रात्रि 12:01 अक्टूबर 14 से रात्रि 12:50 अक्टूबर 14 तक*
व्रत पर्व विवरण – विद्यारम्भम् का दिन, मध्वाचार्य जयन्ती, रवि योग (प्रातः 06:36 से रात्रि 02:51 अक्टूबर 14 तक)
विशेष – दशमी को कलंबी शाक त्याज्य है व एकादशी को सिम्बी (सेम) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

प्रदक्षिणा में छिपे वैज्ञानिक रहस्य*

देवमूर्ति व ब्रह्मनिष्ठ संत-महापुरुषों के चारों तरफ दिव्य आभामंडल होता है । वैसे तो हर व्यक्ति के शरीर से एक आभा (aura) निकलती है किंतु ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष का आभामंडल दूर-दूर तक फैला होता है । यदि वे महापुरुष कुंडलिनी योग के अनुभवनिष्ठ योगी भी हों तो उनका आभामंडल इतना व्यापक होता है कि उसे नापने में यंत्र भी असमर्थ हो जाते हैं । ऐसे आत्मारामी संत जहाँ साधना करते हैं, निवास करते हैं वह स्थल उनकी दिव्य आभा से, उनके शरीर से निकलनेवाली दिव्य सूक्ष्म तरंगों से सुस्पंदित, ऊर्जा-सम्पन्न हो जाता है । इस कारण ऐसे महापुरुष की परिक्रमा करने से तो लाभ होता ही है, साथ ही उनके सान्निध्य से सुस्पंदित स्थानों की भी परिक्रमा से हमारे अंदर आश्चर्यजनक उन्नतिकारक परिवर्तन होने लगते हैं ।

*प्रदक्षिणा *

प्र + दक्षिणा अर्थात् दक्षिण (दायीं दिशा) की ओर फेरे करना । परिक्रमा सदैव अपने बायें हाथ की ओर से दायें हाथ की ओर ही की जाती है क्योंकि दैवी शक्ति के आभामंडल की गति दक्षिणावर्ती होती है । इसकी विपरीत दिशा में परिक्रमा करने से उक्त आभामंडल की तरंगों और हमारी स्वयं की आभा-तरंगों में टकराव पैदा होता है, जिससे हमारी जीवनीशक्ति नष्ट होने लगती है ।

प्रदक्षिणा ७, लाभ अनगिनत !*

तीर्थों की अपनी महिमा है परंतु हयात ब्रह्मवेत्ता सत्पुरुषों की महिमा तो निराली ही है । उनके लिए शास्त्र कहते हैं कि ‘वे तो चलते-फिरते तीर्थराज हैं, तीर्थ शिरोमणि हैं । ऐसे महापुरुष की यदि किसी वस्तु पर दृष्टि पड़ जाय, स्पर्श हो जाय अथवा वे उस पर संकल्प कर दें तो वह हमारे लिए ‘प्रसाद’ हो जाती है, प्रसन्नता, आनंद-उल्लास एवं शांति देनेवाली हो जाती है, साथ ही मनोकामनाएँ पूर्ण करती है ।

इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है विश्वभर में स्थित ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष के द्वारा शक्तिपात किये हुए वटवृक्ष या पीपल वृक्ष, जिन्हें ‘बड़ बादशाह’ अथवा ‘पीपल बादशाह’ के नाम से जाना जाता है । ये कलियुग के साक्षात् कल्पवृक्ष साबित हो रहे हैं । इनकी श्रद्धापूर्वक मात्र ७ प्रदक्षिणा करने से लाखों-लाखों लोगों ने अनगिनत लाभ उठाये हैं । कितनों के रोग मिट गये, कितनों के दुःख-संताप दूर हुए, कितनों की मनोकामनाएँ पूर्ण हुई हैं तथा कितनों की आध्यात्मिक उन्नति हुई है ।

जब श्रद्धालु अपना दायाँ अंग आराध्य देव की ओर करके एवं मन-ही-मन प्रदक्षिणा की संख्या व संकल्प निश्चित करके प्रदक्षिणा करता है तो उसके शरीर, मन व बुद्धि पर इष्ट देवता की दिव्य तरंगों का विशेष प्रभाव पड़ता है । परिक्रमा के समय यदि मन से शुभ संकल्प व समर्पण भावना के साथ सर्वसिद्धि प्रदायक भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप सुमिरन होता है तो मन शुद्धि भी होती है और लौकिक शारीरिक, सांसारिक और भी लाभ होते हैं ।
*पंचक*
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को साय 03:44 बजे से 17 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार साय 04:20 बजे तक।
*एकादशी*
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार पापंकुशा एकादशी स्मार्त व्रत (गृहस्थ)।
14 अक्टूबर 2024 दिन सोमवार पापंकुशा एकादशी व्रत वैष्णव।
*प्रदोष*
15 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार प्रदोष व्रत।
*पूर्णिमा*
16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार व्रत पूर्णिमा।
17 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार स्नान दान पूर्णिमा कार्तिक स्नान प्रारम्भ।

*पंo वेदान्त अवस्थी*

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