*आज का पञ्चाङ्ग*
*दिनांक – 12 अक्टूबर 2024*
*दिन – शनिवार*
*संवत्सर –काल युक्त*
*विक्रम संवत – 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2080)*
*शक संवत – 1946*
*कलि युगाब्द –5126*
*अयन – दक्षिणायन*
*ऋतु – शरद ॠतु*
*मास – अश्विन*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – नवमी सुबह 10:58 तक दशमी*
*नक्षत्र – श्रवण 13 अक्टूबर प्रातः 04:27 तक तत्पश्चात धनिष्ठा*
*योग – धृति रात्रि 12:22 तक तत्पश्चात शूल*
*राहुकाल – सुबह 09:01 से सुबह 10:28 तक*
*सूर्योदय – 06:13*
*सूर्यास्त – 05:47*
_स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशाशूल – पूर्व दिशा मे*
व्रत पर्व विवरण – दुर्गा विसर्जन, सरस्वती विसर्जन, शारदीय नवरात्र समाप्त, नवरात्र पारणा, विजयादशमी,(पूरा दिन शुभ मुहूर्त), विजय मुहूर्त (दोपहर 02:10 से दोपहर 02:57 तक), (संकल्प, शुभारम्भ, नूतन कार्य, सीमोल्लंघन के लिए), दशहरा, अपराजिता -शमी-वृक्ष अस्त्र-शस्त्र -आयुध वाहन पूजन
विशेष – नवमी को लौकी खाना गोमांस के समान त्याज्य है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
*एकादशी के दिन करने योग्य*
13 अक्टूबर 2024 रविवार को सुबह 09:08 से 14 अक्टूबर, सोमवार को सुबह 06:41 तक एकादशी है।
विशेष – 13 अक्टूबर 2024 रविवार को पापांकुशा-पाशांकुशा एकादशी (स्मार्त) एवं 14 अक्टूबर, सोमवार को त्रिस्पृशा पापांकुशा-पाशांकुशा एकादशी (भागवत)
*14 अक्टूबर, सोमवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें ।*
एकादशी को दिया जला के विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें……. अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत होंगे l
*एकादशी के दिन ये सावधानी रहे*
महीने में १५-१५ दिन में एकादशी आती है एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए एकादशी के दिन जो चावल खाता है… तो एक- एक चावल एक- एक कीड़ा खाने का पाप लगता है… ऐसा डोंगरे जी महाराज के भागवत में डोंगरे जी महाराज ने कहा
*त्रिस्पृशा का महायोग*
*त्रिस्पृशा का महायोग : हजार एकादशियों का फल देनेवाला व्रत*
14 अक्टूबर 2024 सोमवार को त्रिस्पृशा-पापांकुशा पाशांकुशा एकादशी है ।
एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ के उपवास से एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है । इस एकादशी को रात में जागरण करनेवाला भगवान विष्णु के स्वरूप में लीन हो जाता है ।
‘पद्म पुराण’ में आता है कि देवर्षि नारदजी ने भगवान शिवजी से कहा : ‘‘सर्वेश्वर ! आप त्रिस्पृशा नामक व्रत का वर्णन कीजिये, जिसे सुनकर लोग कर्मबंधन से मुक्त हो जाते हैं ।”
महादेवजी : ‘‘विद्वान् ! देवाधिदेव भगवान ने मोक्षप्राप्ति के लिए इस व्रत की सृष्टि की है, इसीलिए इसे ‘वैष्णवी तिथि कहते हैं । भगवान माधव ने गंगाजी के पापमुक्ति के बारे में पूछने पर बताया था : ‘‘जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी तथा रात्रि के अंतिम प्रहर में त्रयोदशी भी हो तो उसे ‘त्रिस्पृशा’ समझना चाहिए । यह तिथि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देनेवाली तथा सौ करोड तीर्थों से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है । इस दिन भगवान के साथ सदगुरु की पूजा करनी चाहिए ।”
यह व्रत सम्पूर्ण पाप-राशियों का शमन करनेवाला, महान दुःखों का विनाशक और सम्पूर्ण कामनाओं का दाता है । इस त्रिस्पृशा के उपवास से ब्रह्महत्या जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं । हजार अश्वमेघ और सौ वाजपेय यज्ञों का फल मिलता है । यह व्रत करनेवाला पुरुष पितृ कुल, मातृ कुल तथा पत्नी कुल के सहित विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है । इस दिन द्वादशाक्षर मंत्र (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) का जप करना चाहिए। जिसने इसका व्रत कर लिया उसने सम्पूर्ण व्रतों का अनुष्ठान कर लिया।
*पंचक*
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार को साय 03:44 बजे से 17 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार साय 04:20 बजे तक।
*नवरात्रि*
12 अक्टूबर 2024 दिन शनिवार सरस्वती विसर्जन, नीलकंठ दर्शन,व्रत पारण कन्याभोज इत्यादि।
*एकादशी*
13 अक्टूबर 2024 दिन रविवार पापंकुशा एकादशी स्मार्त व्रत (गृहस्थ)।
14 अक्टूबर 2024 दिन सोमवार पापंकुशा एकादशी व्रत वैष्णव।
*प्रदोष*
15 अक्टूबर 2024 दिन मंगलवार प्रदोष व्रत।
*पूर्णिमा*
16 अक्टूबर 2024 दिन बुधवार व्रत पूर्णिमा।
17 अक्टूबर 2024 दिन गुरूवार स्नान दान पूर्णिमा कार्तिक स्नान प्रारम्भ।
*पंo वेदान्त अवस्थी*