आज का पंचांग*
*दिनांक – 14 मार्च 2025*
*दिन – शुक्रवार*
*संवत्सर – काल युक्त*
*विक्रम संवत – 2081*
*शक संवत – 1946*
*कलि युगाब्द – 5126*
*अयन – उत्तरायण*
*ऋतु – वसंत ॠतु*
*मास – फाल्गुन*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – पूर्णिमा दोपहर 12:23 तक तत्पश्चात प्रतिपदा*
*नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी पूर्ण रात्रि तक*
*योग – शूल दोपहर 01:24 तक तत्पश्चात गण्ड*
*राहुकाल – सुबह 10:48 से दोपहर 12:18 तक*
*सूर्योदय – 06:06*
*सूर्यास्त – 05:54*
_स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशाशूल – पश्चिम दिशा मे*
*अग्निवास*
15+06+01=22÷4=01 स्वर्ग लोक में।
*शिववास*
15+15+5=35÷7=00 श्मशान वासे।
व्रत पर्व विवरण- फाल्गुन पूर्णिमा, होली, धुलेंडी, षडशीति-मीन संक्रांति (पुण्यकाल-दोपहर 12:36 से सूर्यास्त तक) खग्रास चंद्र ग्रहण (भारत मे नही दिखेगा , नियम पालनीय नही है
विशेष- पूर्णिमा एवं व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
*केमिकल रंग छूटाने के लिए*
यदि किसीने आप पर रासायनिक रंग लगा दिया हो तो तुरंत ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व् तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिए | यदि उबटन लगाने से पूर्व उस स्थान को नींबू से रगड़कर साफ़ कर लिया जाय तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता होती है |
*होली टिप्स*
होली के बाद खजूर नहीं खाना चाहिए, ये पचने में भारी होते है, इन दिनों में सर्दियों का जमा हुआ कफ पिघलता है और जठराग्नि कम करता है. इसलिए इन दिनों में हल्का भोजन करें, धाणी और चना खाएं, जिससे जमा हुआ कफ निकल जाये ।
इन दिनों में पलाश/केसुडे/गेंदे के फूलों के रंग से होली खेलने से शरीर के ७ धातु संतुलन में रहते हैं, इनसे होली खेलने से चमड़ी पर एक layer बन जाती है जो धूप की तीखी किरणों से रक्षा करती है।
*होली के बाद खान-पान में सावधानी*
होली के बाद नीम की २० से २५ कोमल पते २-३ काली मिर्च के साथ खूब चबा-चबाकर खानी चाहिये । यह प्रयोग २०-२५ दिन करने से वर्ष भर चर्म रोग , रक्त विकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा होती है तथा रोग प्रतिकारक शक्ति बनी रहती है । इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस सप्ताह या १५ दिन तक पीने से भी त्वचा रोग व मलेरिया से बचाव होता है । सप्ताह भर या १५ दिन तक बिना नमक का भोजन करने से आयु और प्रसन्नता में बढ़ोतरी होती
*पंo वेदान्त अवस्थी*