आज का पञ्चाङ्ग
*दिनांक – 15 जनवरी 2025*
*दिन – बुधवार*
*संवत्सर – काल युक्त*
*विक्रम संवत् – 2081*
*शक संवत – 1946*
*कलि युगाब्द –5126*
*अयन – उत्तरायण*
*ऋतु – शिशिर*
*मास – माघ*
*पक्ष – कृष्ण*
*तिथि – द्वितीया प्रातः 03:23 जनवरी 16 तक, तत्पश्चात तृतीया*
*नक्षत्र – पुष्य प्रातः 10:28 तक तत्पश्चात अश्लेषा*
*योग – प्रीति रात्रि 01:47 जनवरी 16 तक तत्पश्चात आयुष्मान*
*राहु काल – दोपहर 12:49 से दोपहर 02:11 तक*
*सूर्योदय – 06:44*
*सूर्यास्त – 05:16*
स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशा शूल – उत्तर दिशा में*
*अग्निवास*
17+04+01=22÷4=02 पाताल लोक में।
*शिववास*
17+17+5=39÷7 =02 गौरी सन्निधौ वासे।
विशेष – द्वितीया को बृहती (छोटा बैंगन, कटहरी) खाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
*वास्तुशास्त्र के अनुसार ईशान-स्थल की महत्ता*
कमरे में पूर्व व उत्तर दिशा के बीचवाले कोने से कमरे की पूर्वी दीवाल की लम्बाई का एक तिहाई भाग व उत्तरी दीवाल की लम्बाई का एक तिहाई भाग लेकर जो आयताकार स्थल बनता है, वह ‘ईशान-स्थल’ कहलाता है । १२ X १८ के कमरे का ईशान-स्थल ४ X ६ का होगा । खुले भूमिखंड के विषय में भी ऐसे ही समझना चाहिए ।
*सुख-शांतिप्रदायक ईशान-स्थल*
सुख-शांति और कल्याण चाहनेवाले बुद्धिमानों को अपने घर, दुकान या कार्यालय में ईशान-स्थल पर अपने इष्टदेव, सदगुरु का श्रीचित्र लगा के वहाँ धूप-दीप, मंत्रोच्चार तथा साधना-ध्यान पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए । यह विशेष सुख-शांतिदायक है ।
*सुख-समृद्धि में वृद्धि हेतु*
भूमिखंड के ईशान कोण तथा पूर्व एवं उत्तर दिशा में खाली भाग अधिक होना चाहिए और इन भागों में अपेक्षाकृत वजन में हलके व कम ऊँचाईवाले पेड़-पौधे लगाने चाहिए । भूमिखंड के ईशान-स्थल में तुलसी, बिल्व व आँवला लगाना सुख-समृद्धिकारक है ।
*ज्ञानार्जन में सहायता व सत्प्रेरणा हेतु*
विद्यार्थियों के लिए भी ईशान कोण बड़े महत्त्व का है । पूर्व एवं उत्तर दिशाएँ ज्ञानवर्धक दिशाएँ तथा ईशान-स्थल ज्ञानवर्धक स्थल है । जो विद्यार्थी ईशान-स्थल पर बैठ के पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पढ़ता है, उसे ज्ञानार्जन में विशेष सहायता मिलती है । पूर्व की ओर मुख करने से विशेष लाभ होता है । अध्ययन-कक्ष में सदगुरु या ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के श्रीचित्र लगाने चाहिए, इससे सत्प्रेरणा मिलती है ।
*पंo वेदान्त अवस्थी*