आज का पञ्चाङ्ग
*दिनांक – 12 मई 2025*
*दिन – सोमवार*
*संवत्सर – सिद्धार्थ*
*विक्रम संवत् – 2082*
*शक संवत – 1947*
*कलि युगाब्द – 5127*
*अयन – उत्तरायण*
*ऋतु – वसंत*
*मास – वैशाख*
*पक्ष – शुक्ल*
*तिथि – पूर्णिमा रात्रि 10:25 तक तत्पश्चात् प्रतिपदा*
*नक्षत्र – स्वाति सुबह 06:17 तक तत्पश्चात् विशाखा*
*योग – वरीयान् सुबह 05:33 मई 13 तक तत्पश्चात् परिघ*
*राहुकाल – सुबह 07:39 से सुबह 09:18 तक*
*सूर्योदय – 05:24*
*सूर्यास्त – 06:36*
स्थानीय समयानुसार राहुकाल सूर्यास्त सूर्योदय समय में अंतर सम्भव है।
*दिशा शूल – पूर्व दिशा में*
*अग्निवास*
15+02+01=18÷4=02 पाताल लोक में।
*शिववास*
15+15+5=35÷7 =00 श्मशान वासे।
व्रत पर्व विवरण – वैशाखी पूर्णिमा, बुद्ध पूर्णिमा, कूर्म जयंती
विशेष – पूर्णिमा के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंड: 27.29-34)
*धनिया के फायदे(गर्मी हो तो)*
आंवला, धनिया, मिश्री समभाग मिलाकर रखो। १-१ चम्मच सुबह-शाम चबाकर खाओ और ऊपर से १ गिलास पानी पी लो अथवा घोल बना कर पी लो । इससे स्वप्नदोष, मूत्रदाह, लू लगना, सिरदर्द, नकसीर व आँखे जलने पर आराम होता है । किसी की आँखें जलती हैं, डोरे जलते हैं तो सौफ ५० ग्राम ,धनिया ५० ग्राम , आवलें का पाउडर ५० ग्राम,मिश्री का पाउडर ५० ग्राम २०० ग्राम हो गया , १०-१५ ग्राम पानी में भींगा के रख दिया , १-२ घंटे बाद उसको मिक्सी में घुमा के छान के पी ले , डोरे जलना बंद , मुहं में छाले पड़ना ठीक , रात को नींद नहीं आएगी तो आएगी नींद ,तबियत चंगी होगी ।
धनिया (सूखा या हरा धनिया) व मिश्री पानी में घोलकर पीने से लू लगी हो या बेहोशी हो तो तुरंत लाभ होता है ।
*पीपलकन्द(प्रवलपिष्टि युक्त)*
पवित्र पीपल वृक्ष के आरक्त सुकोमल पत्तों से सूर्य की किरणों में बनाया हुआ यह ‘पीपलकंद’ पीपल के दिव्य गुणों को अपने में संजोये हुए है। यह अत्यंत सात्विक, शीतल, उत्तम पित्तशामक, हृदय व नाड़ी संस्थान (Nervous system) के लिए बलकारक, गर्भपोषक, रक्तशुद्धिकर, पुष्टि- तृप्तिकारक व मनःशान्तिकर है।
इसके सेवन से गर्मी व पित्तजन्य समस्याएं जैसे- आँखे, पैरों के तलवे व मूत्र में जलन, मुँह में छालें, लू लगना, अधिक मासिक स्त्राव आदि में राहत मिलती है। इसका सेवन हृदय को बल देता है, रक्त की शुद्धि करता है। परिणामतः हृदय की कार्यक्षमता में वृद्धि होकर हृदयाघात (हार्ट-अटैक) से रक्षा होती है। यह कामविकार व स्वप्रदोष को नियंत्रित करता है। क्रोधी स्वभाव का नियमन करने में पीपलकन्द अनुपम है।
यह गर्भाशय को पुष्ट व पित्त को शांत कर महिलाओं में होनेवाले अत्यधिक मासिक स्त्राव, श्रेत प्रदर आदि गर्भाशय से सम्बंधित विकारों को दूर करने में सहायक है। यह बार-बार होनेवाले गर्भपात से रक्षा करता है । उत्तम गर्भपोषक है अतः गर्भवती माताओं के लिए विशेष सेवनीय है।